
लिंगायत “धर्म” -हिन्दूओं को तोड़ने की कोशिश।
लिंगायत सम्प्रदाय भारत वर्ष के प्राचीनतम सनातन हिन्दू धर्म का एक हिस्सा है, भगवान शिव जो कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश, चराचर जगत के उत्पत्ति के कारक हैं उनकी स्तुति आराधना करता है। आप अन्य शब्दों में इन्हें शैव संप्रदाय को मानने वाले अनुयायी कह सकते हैं। इस समुदाय का जन्म 12वीं शताब्दी में समाज सुधारक बसवन्ना के समाज सुधारक आंदोलन के रुप में हुआ था। बसवन्ना खुद ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे लेकिन उन्होंने ब्राह्मणों की वर्चस्ववादी व्यवस्था, कर्मकांडों और कुरीतियों से खुद को दूर रखा और इसी के चलते लिंगायत का जन्म हुआ। लिंगायत सब अंधविश्वास मान्यताओं को खारिज कर भगवान को उचित आकार “इष्टलिंग” के रूप मे पुजा करने का तरीका प्रदान करता है। लिंगायत में सभी मानव-जाति जन्म से बराबर हैं। भेदभाव सिर्फ़ ज्ञान पर आधारित है (गुरु शिष्य)।ये कर्नाटक की अगड़ी जातियों में आते हैं। अच्छी खासी आबादी और आर्थिक रूप से ठीकठाक होने की वजह से कर्नाटक की राजनीति पर इनका प्रभावी असर है। कर्नाटक में लगभग 18 फीसदी आबादी हैं और १०० विधानसभा सीटों को प्रभावित करते हैं। ये सिर्फ कर्नाटक ही नहीं बल्कि महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल में भी इनकी काफी संख्या हैं।लिंगायत समाज पहले हिन्दू वैदिक धर्म का ही पालन करता था लेकिन लिंगायत समाज के लोग लंबे समय से हिंदू धर्म से अलग धर्म का दर्जा दिए जाने की मांग कर रहे थे वहीं, बीजेपी अब तक लिंगायतों को हिंदू धर्म का ही हिस्सा मानती है। कांग्रेस ने लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा देने का समर्थन किया है। कर्नाटक सरकार ने नागमोहन समिति की सिफारिशों को स्टेट माइनॉरिटी कमीशन ऐक्ट की धारा 2डी के तहत मंजूर कर लिया।कांग्रेस पर अक्सर हिन्दू विरोधी होने का आरोप लगता है। ऐसा होना स्वाभाविक भी है, क्योंकि कांग्रेस ही वह पार्टी है जिसने शांति और सहिष्णुता के लिए सर्वमान्य हिन्दू समाज के लिए ‘हिन्दू आतंकवाद’ शब्द का अविष्कार किया और हिन्दू समाज को बदनाम करने की कोशिश की। कर्नाटक में आगामी होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस अब हिन्दू समाज को तोड़ने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस के निशाने पर लिंगायत समुदाय है, क्योंकि भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बी.एस. येदियुरप्पा की इस पर पकड़ मजबूत है। कांग्रेस किसी भी कीमत पर सत्ता में वापसी करना चाहती है इसलिए लिंगायत समाज को हिन्दुओं से अलग करना राजनितिक लॉलीपॉप है। कांग्रेस कर्नाटक में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) और सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) जैसे अलगाववादी राजनितिक पार्टियों (संगठनों) के साथ चुनाव लड़ रही है। झारखंड में पीएफआई को पहले ही प्रतिबंधित किया जा चुका है, पर कर्नाटक में पीएफआई और एसजीपीआई मुस्लिम वोट के धु्रवीकरण में जुटी हैं। यह समाज और देश के हित में नहीं है इसकी जितनी भर्तसना की जाय वो कम नहीं है।
चन्द्रपाल प्रजापति नोएडा